चन्दनखण्ड में सौरभ का चाक्षुष प्रत्यक्ष ज्ञानलक्षणा से होता है।
2.
चित्रकार चाक्षुष प्रत्यक्ष के आलोक में बैठे हुए व्यक्ति का रेखाचित्र
3.
बहुत समय तक उसका चाक्षुष प्रत्यक्ष उसके पहले के स्पर्शमूलक प्रत्यक्ष के अनुभवों तक सीमित रहा।
4.
जैसे यह घड़ा है इस प्रत्यक्षज्ञान का साधन नेत्र है अतः नेत्र प्रत्यक्षज्ञान का करण है यह नेत्र इन्द्रिय चाक्षुष प्रत्यक्ष ज्ञान का करण है ।
5.
एक ऐसे ही विशेष केस में, जिसमें रोगी का चाक्षुष प्रत्यक्ष क्षतिग्रस्त होने पर भी उसके चाक्षुष विश्लेषक की क्षमता ज्यों की त्यों बनी हुई थी।
6.
' यहाँ आलोकविशेष के अभाव को छाया मानने पर भी स्थानान्तर में उसका दर्शन हो सकता हैं क्योंकि प्रतिवादी के मत में अभाव का भी चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है।
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(3) न्यायदर्शन के अनुसार जितनी इंद्रियाँ हैं उतने प्रकार के प्रत्यक्ष होते हैं, जैसे-चाक्षुष, श्रावण, रासन, ध्राणज तथा स्पार्शना किंतु वैशेषिक के मत में एकमात्र चाक्षुष प्रत्यक्ष ही माना जाता है।
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(3) न्यायदर्शन के अनुसार जितनी इंद्रियाँ हैं उतने प्रकार के प्रत्यक्ष होते हैं, जैसे-चाक्षुष, श्रावण, रासन, ध्राणज तथा स्पार्शना किंतु वैशेषिक के मत में एकमात्र चाक्षुष प्रत्यक्ष ही माना जाता है।
9.
प्रत्यक्ष की क्रियाशीलता मुख्यतः विश्लेषकों के प्रेरक-घटकों की प्रत्यक्ष की प्रक्रिया में भाग लेने में व्यक्त होती है (जैसे स्पर्श में हाथ चलना, चाक्षुष प्रत्यक्ष में नेत्रों का गति करना, आदि) ।
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(3) न्यायदर्शन के अनुसार जितनी इंद्रियाँ हैं उतने प्रकार के प्रत्यक्ष होते हैं, जैसे-चाक्षुष, श्रावण, रासन, ध्राणज तथा स्पार्शना किंतु वैशेषिक के मत में एकमात्र चाक्षुष प्रत्यक्ष ही माना जाता है।